लम्हे लखेरे हैं पलकों पे ठेहरे हैं
सांसें शरमाईसी कम्बख्त हरजाईसी
दिल के दो चेहरे हैं जैसे दिल दुपेहेरे हैं
हसी ये अलसाईसी लगती रुबाईसी
होठों पे दबे पावं निकले हैं ऐसे जैसे
जाने कितने जाने कितने पेहेरे हैं
लम्हे लखेरे हैं पलकों पे ठेहरे हैं
सांसें शरमाईसी कम्बख्त हरजाईसी
लम्हे लखेरे हैं पलकों पे ठेहरे हैं
शामे तन्हाई सी यादें शेहनाई सी
दिल के दो चेहरे हैं जैसे दिल दुपेहेरे हैं
हसी ये अलसाईसी लगती रुबाईसी
होठों पे दबे पावं निकले हैं ऐसे जैसे
जाने कितने जाने कितने पेहेरे हैं
लम्हे लखेरे हैं पलकों पे ठेहरे हैं
सांसें शरमाईसी कम्बख्त हरजाईसी